देदे कोई नाम कि जमाना याद रखे
जब हों रुखसत इस जहाँ से
तो हमारा दोस्ताना याद रखे
करदे इतना उज्जाला कि
चाँद भी अचम्भा करे
बिछादे शब्दों का जाल कि
विद्वान् भी हमें समझा करे
फैला दे ऐसी खुशबु चारों और
कि फूल भी हमें याद रखें
देदे कोई नाम कि जमाना याद रखे
करदे कोई ऐसा करिश्मा कि
हम भी किसी का सहारा बने
अपना ले ऐसा रस्ता कि
हमारा काम किसी का निवाला बने
निभादे सारे वादे कुछ इस तरह कि
खुदा भी हमे और न परखे
देदे कोई नाम कि जमाना याद रखे
कुछ ऐसा कर 'जय'कि काबिल हों
बोझ उठाने के लिए समाज का
ना हों अज्ञान हम कभी
ज्ञान हो हमे हर राज का
बनादे कुछ ऐसा इतिहास 'जय'कि
ये जहाँ भी हमे याद रखे
देदे कोई नाम कि जमाना याद रखे
जब हो रुखसत इस जहाँ से
तो हमारा दोस्ताना याद रखे
Saturday, 25 April 2015
जमाना याद रखे
इम्तिहान
इंसान न जाने कहाँ चले गए
केवल शमशान बाकी है
मुर्दे ही आपस में लड़ रहे है
इंसानो के बस नाम बाकी है
अभी मुझ पर ईश्वर का कर्ज
और एहसान बाकी है
बस ये जहाँ बाकी है
और मेरे इम्तिहान बाकी है
बार-बार किनारे पहुंच जाता हूँ
फिर भी मझधार में धकेल दिया जाता हूँ
मंजिल नही मिलने पर कभी परेशान तो
कभी घबरा भी जाता हूँ
नाव तो है मेरे पास
पर पतवार अभी बाकी है
चला तो हूँ धारा में
पर न जाने कौन सा तूफान बाकी है
लेकिन करूँगा सामना
जब तक जान बाकी है
बस ये जहाँ बाकी है
और मेरे इम्तिहान बाकी है
बिटिया की आँखों में
मेरे अधूरे ख्वाब देख सकता हूँ
बापू-माँ की आँखों में मेरे लिए
अहसास देख सकता हूँ
बेटे के सपनो का आसमान बाकी है
बिटिया के अरमान बाकी है
हे मेरे ईश्वर,मेरे लिए तेरा
कौन सा ऐलान बाकी है
बस ये जहाँ बाकी है
और कितने इम्तिहान बाकी है।
Wednesday, 15 April 2015
अच्छे दिन
सुना था कभी,अच्छे दिन आने वाले है
पुराने घावों पर मरहम लगाने वाले है
खोदा पहाड़ निकली चुहिया
क्या इस कहावत को चरितार्थ करने वाले है?
सुना था कभी,अच्छे दिन आने वाले है।
एक उमीद लगा बैठे थे
हर और खुशहाली होगी
ऐसा विशवास लगा बैठे थे
न होगा कोई भूख प्यासा
ऐसा अरमान लगा बैठे थे
उन्ही अरमानों के पंख काटने वाले है
सुना था कभी, अच्छे दिन आने वाले है
रोज मरते है किसान-मजदूर यहाँ
अपनी रोटियाँ सकते है नेता यहाँ
कैसे भी हो बस अपना फायदा हो
मातम में भी रोज लड़ते है चन्द लोग यहाँ
क्या यहीं लोग आदर्श कहलाने वाले है
सुना था कभी,अच्छे दिन आने वाले है
Sunday, 12 April 2015
माँ के आँसू
माँ के आँसुओ की कीमत कौन चुकाएगा
बहन के हाथ में रक्षा का धागा कौन पहनाएग
दुःख की बहती इस नदिया में अब
उस बाप को कौन ये दुःख का हल बताएगा
भाई के सपने मिट्टी में मिल गए
साथी-मित्र सब रुखसत हो गए
पलभर में सूरत बदल गई जहाँ की
पलभर में कुनबे उजड गए
कितना आसान है तबाह करना
कितना आसान है मरना और मारना
पर क्यों मुश्किल लगता है
इस जमीं पर बसना और बसाना
कब तक सीखेगें हम मानवता को
कब तक समझेंगे हम हालात को
क्यों करते है इतना खून-खराबा
कब तक जानेंगे खुदा की इस कायनात को
आतंक का साया
ए जालिम कितनें मासुमो को तुमने हलाल कर दिया
पाक जमीं को तूमने उनके खून से लाल कर दिया
जरा भी नही सोचा देख कर उनके फूल से चहरो को
उठाई बन्दूक और फिर चारों ओर कत्लेआम कर दिया
रूह ने तुझको भी रोकना चाहा होगा ज़ुल्म करने को
कितना नापाक था तू उसको भी दरकिनार कर दिया
दरोदीवारें भी रो पड़ी होंगी देख कर वो नापाक मंजर
रोया नही तेरा दिल और तूने कितनो को खत्म कर दिया
ए खुदा कब तक देखेगा खेल दहशतगर्दी का इस जहाँ मेँ
'सागर' इन जलिमो ने सारी मानवता को शर्मसार कर दिया
बदलते हालात
गरीबी को अमीरी से पिटते देखा मैने
पानी को आग पर धुंवा होते देखा मैने
कितना फर्क आ गया है अब और तब मे
वक्त को तक़दीर के आगे रोते देखा मैने
चलता था सिक्का किसी के नाम का कभी
उसी सिक्के को पैरों के निचे कुचलते देखा मैने
कश्तियां बह जाती है तूफ़ानों में बनके कागज़
लेकिन उसी तूफ़ान को बेबस गुजरते देखा मैने
कितना खुश होगा वो बनाके इस जहां को
दुःख तो तब हुआ जब खुनी खेल देखा उसने
क्या फक्र करें क्या अभिमान करें इस जिन्दगी का
जिन्दगी को भी पलभर में बदलते देखा मैने
मेरी एक और रचना
जिंदगी ने सवालात बदल डाले
वक्त ने हालात बदल डाले
हम तो वहीँ थे वो ही है
पर अपनों ने ख्यालात बदल डाले
बनके हमसफ़र चले थे राहे वफ़ा
पर लोगों ने वफ़ा के सुर बदल डाले
जो कहते थे रस्ते में उजाला करने का
आज उन्होंने ही चिराग बुझा डाले