Sunday 12 April 2015

मेरी एक और रचना

जिंदगी ने सवालात बदल डाले
वक्त ने हालात बदल डाले
हम तो वहीँ थे वो ही है
पर अपनों ने ख्यालात बदल डाले
बनके हमसफ़र चले थे राहे वफ़ा
पर लोगों ने वफ़ा के सुर बदल डाले
जो कहते थे रस्ते में उजाला करने का
आज उन्होंने ही चिराग बुझा डाले

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