गरीबी को अमीरी से पिटते देखा मैने
पानी को आग पर धुंवा होते देखा मैने
कितना फर्क आ गया है अब और तब मे
वक्त को तक़दीर के आगे रोते देखा मैने
चलता था सिक्का किसी के नाम का कभी
उसी सिक्के को पैरों के निचे कुचलते देखा मैने
कश्तियां बह जाती है तूफ़ानों में बनके कागज़
लेकिन उसी तूफ़ान को बेबस गुजरते देखा मैने
कितना खुश होगा वो बनाके इस जहां को
दुःख तो तब हुआ जब खुनी खेल देखा उसने
क्या फक्र करें क्या अभिमान करें इस जिन्दगी का
जिन्दगी को भी पलभर में बदलते देखा मैने
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