Saturday 25 April 2015

इम्तिहान

इंसान न जाने कहाँ चले गए
केवल शमशान बाकी है
मुर्दे ही आपस में लड़ रहे है
इंसानो के बस नाम बाकी है
अभी मुझ पर ईश्वर का कर्ज
और एहसान बाकी है
बस ये जहाँ बाकी है
और मेरे इम्तिहान बाकी है
बार-बार किनारे पहुंच जाता हूँ
फिर भी मझधार में धकेल दिया जाता हूँ
मंजिल नही मिलने पर कभी परेशान तो
कभी घबरा भी जाता हूँ
नाव तो है मेरे पास
पर पतवार अभी बाकी है
चला तो हूँ धारा में
पर न जाने कौन सा तूफान बाकी है
लेकिन करूँगा सामना
जब तक जान बाकी है
बस ये जहाँ बाकी है
और मेरे इम्तिहान बाकी है
बिटिया की आँखों में
मेरे अधूरे ख्वाब देख सकता हूँ
बापू-माँ की आँखों में मेरे लिए
अहसास देख सकता हूँ
बेटे के सपनो का आसमान बाकी है
बिटिया के अरमान बाकी है
हे मेरे ईश्वर,मेरे लिए तेरा
कौन सा ऐलान बाकी है
बस ये जहाँ बाकी है
और कितने इम्तिहान बाकी है।

No comments:

Post a Comment