Friday 13 May 2016

जहर

जब जहर भी कुछ ना कर पाए
तो फिर और क्या पिया जाए

तूने इतना दर्द जो दिया है मुझे
जिस पर कोई दवा काम ना आए

एक आंसू भी नही छोड़ा तूने
बता अब ये आँखे कैसे  रो पाए

कैसे पूरा करूँ उन हसीन सपनो को
जो कभी मैने थे रातों में सजाए

मंजिल अब लगे है धुआं-धुआं
और कदम भी मेरे लड़खड़ाए

गहरे जख्मो के साथ भी जी ले
पर इस बेवफाई से कैसे जिया जाए

1 comment:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 13 अगस्त2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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