जब जहर भी कुछ ना कर पाए
तो फिर और क्या पिया जाए
तूने इतना दर्द जो दिया है मुझे
जिस पर कोई दवा काम ना आए
एक आंसू भी नही छोड़ा तूने
बता अब ये आँखे कैसे रो पाए
कैसे पूरा करूँ उन हसीन सपनो को
जो कभी मैने थे रातों में सजाए
मंजिल अब लगे है धुआं-धुआं
और कदम भी मेरे लड़खड़ाए
गहरे जख्मो के साथ भी जी ले
पर इस बेवफाई से कैसे जिया जाए
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 13 अगस्त2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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