Saturday, 19 March 2016

हे,राजा! पहन ले तू बेशक लाखों का सूट

हे,राजा! पहन ले तू बेशक लाखों का सूट
बहुत ऊँचा कर ले चाहे तू अपना वजूद
बस ये अंतर खत्म कर दे  इस समाज का
तन ढक जाए और मिट जाए थोड़ी उनकी भूख

घूम ले चाहे तू दुनिया का कोना-कोना
आसमान भी लगे तेरे आगे बोना-बोना
देश के भविष्य को और कौन देखेगा?
बंद कर दे अब ये भूतकाल का रोना-धोना

लालच से मत बहला इस जनता को तू
देख ले गोर से तू इंसाफ की ये तराजू
बैठना तुझे भी है इसके एक पलड़े में कभी
जहां पूरी नही होगी तेरे तोल की आरजू

कभी तो देख ले किसी असहाय की आँखों में
एक नही,ऐसे बहुत मिल जाएँगे तुझे लाखो में
शायद तेरी समझ में जाए देख कर ये हालात
कि कितने अभी पड़े है गरीबी की सलाखों में

कुछ फूल खिलते है शिक्षा के आँगन में हर रोज
और कुछ मुरझा जाते है खिलने से पहले ही रोज
ना मुक्कमल देखरेख होती,ना होता है इनका विकास
देखते ही देखते बस लुट जाती है इनकी हर मौज

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