sagar kaswan's poetry
Thursday, 28 January 2021
कयामत की रात
रात चांदनी है फिर भी अंधेरा है
किसान है शांत, षड्यंत्र ने घेरा है
सामने आता नही कभी वो शातिर
नकाब में छुपाया उसने चेहरा है
ओरों के कंधों पर रखी उसने बन्दूक
निशाने पर उसके बस किसान मेरा है
कयामत की रात है ये अंधेरी चांदनी
निडर ,बेखोफ ये किसान मेरा है
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment