sagar kaswan's poetry
Friday, 3 April 2020
दिया भी जले
दीया भी जले लेकिन चूल्हा भी जलना चाहिए
भर पेट खाएं, लेकिन खाली पेट भी भरना चाहिए
वो जो निगाहें तुम्हारी ओर ताक रही हैं जनाब
उन निगाहों कि ओर भी थोड़ा ध्यान करना चाहिए
पहन ले चाहे तू लाखों का सूट अपने इस वदन पर
लेकिन वो जो नंगा वदन है वो भी अब ढ़कना चाहिए
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