है हिन्दू,मुसलमा,सिख कोई,तो रहने दीजिए
मजहब के नाम पर मुल्क ना बटने दीजिए
बनाने वाले ने कोई फर्क नही किया खून में
दोस्तों,खून के रंग में फर्क ना होने दीजिए
यहाँ गाथा है गौतम,नानक,कबीरा की
इस शदियों की गाथा को यूँ ना मिटने दीजिए
यहाँ निशां है भगत,अशफाक,आजाद के
इन पाक निशां को यूँ न मिटने दीजिए
मिटटी का रंग बदल सकता है इस जहां में
पर इसकी खुशबु को ना बदलने दीजिए
गर बची है थोड़ी सी इंसानियत कही जिगर में
तो किसी भूखे पेट को यूँ ना सोने दीजिए
बना लीजिए अपनी महल-ओ-हवेलियां
पर किसी गरीब का आशियाँ ना टूटने दीजिए
खेलिए सियासत का खेल अपनी ख़ुशी से
पर किसी मासूम को खेल ना बनने दीजिए
गर है तो रखिए शौक आग से खेलने का
पर किसी गरीब का झोंपड़ा यूँ ना जलने दीजिए
है सभी इस उन्मुक्त आसमां के परिंदे
इनकी परवाज को यूं ना रुकने दीजिए
Saturday, 31 October 2015
शौक-ए-मिजाज
Thursday, 22 October 2015
राम कौन है
राम कौन है आप में,बताए कोई जरा
जलते हुए रावण ने पूछा सबको
जब-जब घमण्ड ने मनाया हर वर्ष दशहरा
कदम-कदम पर बैठी है कितनी अहिल्या
लेकिन किसी को भी अभी तक राम नही मिला
कितनी सीता सहती है जुल्म की आग को
और कितनी अबलाओं को जाता है रोज हरा
राम कौन है आप में,बताए कोई जरा
जलते हुए रावण ने पूछा सबको
जब-जब घमण्ड ने मनाया हर वर्ष दशहरा
रावण तो एक ही सुना था लंका के लिए
पता नही अब तक कितने रावण मार दिए
कितने रावण है अभी तक मन के अन्दर
कोई उसमें झांककर तो देखे जरा
राम कौन है आप में,बताए कोई जरा
जलते हुए रावण ने पूछा सबको
जब-जब घमण्ड ने मनाया हर वर्ष दशहरा
कितना पाखण्ड देखा जाता है हर वर्ष
कितना दिखावा होता है हर तरफ
राम जैसा आदर्श दीखता कहीं भी नही
फिर भी रावण को जलाया जाता है हर तरफ
पर अंदर का दम्भ अभी तक है नही मरा
राम कौन है आप में,बताए कोई जरा
जलते हुए रावण ने पूछा सबको
जब-जब घमण्ड ने मनाया हर वर्ष दशहरा
कितना पैसा बहा दिया जाता है हरबार
कितने तीरों की पैनी की जाती है धार
फिर छोड़ दिया जाता है उस पुतले पर
स्वयं का करते हुए राम सा श्रृंगार
अभी तक किसी का मन नही है भरा
राम कौन है आप में,बताए कोई जरा
जलते हुए रावण ने पूछा सबको
जब-जब घमण्ड ने मनाया हर वर्ष दशहरा
कब तक झूठ के पुतलों को जलना होगा
कब तक श्रद्धा के नाम पर पाखण्ड होगा
कब तक करेंगे राम और रावण का दिखावा
कब तक ये धर्म के नाम पर खेल होगा
इस पर भी तो कोई विचार करो जरा
राम कौन है आप में,बताए कोई जरा
जलते हुए रावण ने पूछा सबको
जब-जब घमण्ड ने मनाया हर वर्ष दशहरा
Monday, 19 October 2015
Life is not like an ornament
Life is not like an ornament
To be kept forever in a shelf
Neither be considered as rent
Nor taken it as a toy of oneself
Like seed that grows as plant
And later then forms as a tree
Fruits to taste for all as grant
Shade for creatures as free
Like a soldier,place in the battle
Fight till the last figure to count
Has to prove clear in that rattle
Each and every steps of account
A long but tedious race to be run
Not like a rabbit but a tortoise
Thinking it as play and all fun
Away from all this worldly noise
Carrying with it joy and sorrow
Facing difficulties and alteration
Appearing so open and narrow
A puzzle of this mortal creation
Has to give the full description
To the Almighty who sends all
To play the role leaving inspiration
For others on this worldly wall
Tuesday, 6 October 2015
सुलग रहा है सारा हिंदुस्तान
सुलग रहा है सारा हिंदुस्तान
पूछ रहा है बस एक सवाल
कोई तो बोलो अच्छे दिन आने में
अब लगेगें और कितने साल
धर्म-राजनीति के नाम पर
जाने कितने होंगे और हलाल
चारों ओर है दहशत फैली
कट रहे है सैनिकों के कपाल
कोई तो बोलो अच्छे दिन आने में
अब लगेगें और कितने साल
घर भर रहे है सब अपने-अपने
जनता बेचारी है बेहाल
महंगाई ने कमर है तोड़ी
अमीर हो रहे है मालामाल
कोई तो बोलो अच्छे दिन आने में
अब लगेगें और कितने साल
मन की बात से भूख नही मिटती
जुमलों से नही होता कोई कमाल
काम करके दिखाना पड़ता है
इसकी भी आस नही लगती फ़िलहाल
कोई तो बोलो अच्छे दिन आने में
अब लगेगें और कितने साल
राजनीती का सब बिछा रहे है जाल
लुभाने वादों का है चारों तरफ पाल
पल-पल में बदल जाती है इनकी वाणी
बड़ा ही गजब का है इनका मायाजाल
कोई तो बोलो अच्छे दिन आने में
अब लगेगें और कितने साल
सुलग रहा है सारा हिंदुस्तान
पूछ रहा है बस एक सवाल
कोई तो बोलो अच्छे दिन आने में
अब लगेगें और कितने साल